जैसा कि हम सभी को ज्ञात है, कि सभी नवग्रह ( Navagraha ), नक्षत्र एवं तारे अपनी किरणे पृथ्वी पर विकरित करते हैं।
मनुष्य सहित पृथ्वी पर स्थित सभी जीव-निर्जीव वस्तुओं की क्रिया को संचालित करते हैं, और ये वस्तुएँ उन किरणों को स्वयं में समाहित कर लेती हैं।
अतः रत्नों ( Ratn ) का प्रभाव हमें अधिक महसूस होता है, क्योंकि रत्नों से निकलने वाला रंग गहन अवस्था में होता है। रंगीन किरणों का गहन अवस्था में प्राप्त होना ही ज्योतिषीय दृष्टिकोण से रत्नों के मूल्य व महत्त्व को बढ़ाता है।
उदाहरणत: काँच के पीले टुकड़े और पुखराज में मुख्य अन्तर यही है, कि पुखराज में जितनी औसत में पीली रश्मियाँ घनीभूत हैं उतनी काँच के पीले टुकड़े में नहीं होती।
अत: पीले काँच के टुकड़े से निकली रश्मियों से उतना लाभ नहीं होता जितना कि पुखराज से निकली रश्मियों से होता है।
जो ग्रह जितना हमारे समीप होते हैं। उनकी रश्मियाँ हमें उतना ही प्रभावित करती है, और जो ग्रह जितने दूर होते हैं। उनकी रश्मियाँ उतना ही कम प्रभावशाली होती हैं।
उदाहरणत: सूर्य ग्रह ग्रीष्प ऋतु में ठीक हमारे ऊपर चमकता है। अतः उसकी किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं, और उनकी गर्मी का प्रभाव हम सभी पृथ्वीवासियों पर निश्चित रूप से पड़ता है।
इसी कारण हम सब सूर्य की किरणों के तीव्र ताप से व्याकुल होते हैं और यही कारण है, कि सभी को सर्दी का मौसम अधिक पसन्द होता है, क्योंकि शीत ऋतु में सूर्य तिर्यक दिशा में हो जाता है।
अत: सूर्य कि किरणें पृथ्वी पर सीधी नहों पड़तीं, तिरछी पड़ती हैं। परिणामस्वरूप सूर्य की गर्मी अधिक तेज नहीं लगती बरन् अच्छी लगती है।
इसी प्रकार अन्य ग्रह अपने ग्रह मार्ग में चक्कर काटते हुए पृथ्वी के ठीक ऊपर आते हैं, और हमें अधिक प्रभावित करते हैं।
शरद ऋतु के सूर्य के समान पृथ्वी से तिरछा या दूर होने पर हमें ग्रहों की किरणें कम प्रभावित करती हैं।
रंगो के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिए सात रंग का रहस्य (Colour) भी पढ़े।
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Navagraha and Ratn Relation | नवग्रह और रत्न संबंध
शिशु जब अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेता है, तो पूर्ण रूप से निर्विकार व रश्मिविहीन होता है, परन्तु पृथ्वी पर आते ही वह पृथ्वी के वायुमण्डल के सम्पर्क में आ जाता है।
उसी क्षण ग्रहों की रश्मियाँ उस शिशु के निर्विकार शरीर को आच्छादित कर प्रभावित करती हैं।
उस समय जिस ग्रह की रश्मियाँ घनीभूत होती हैं। उस ग्रह की रश्मियों का प्रभाव सर्वाधिक रूप में होता है, और जिस ग्रह की रश्मियाँ क्षीण होती हैं। उस ग्रह का प्रभाव शिशु पर कम पड़ता है।
अतः शिशु जिस ग्रह की रश्मियों से सबसे पहले आच्छादित होता है। उस ग्रह का प्रभाव उस शिशु को जीवन भर प्रभावित्त करता है। सभी ग्रहों को रश्मियाँ अलग-अलग होती हैं।
अतः सूर्य लाल रंग, चन्द्रमा नारंगी रंग, मंगल पीले रंग, बुध हरे रंग, बृहस्पति आसमानी रंग, शुक्र नीले रंग, शनि बैगनी रंग की रश्मि या किरणें छोड़ता है।
इसी प्रकार प्रत्येक रत्न एक ग्रह विशेष की किरणें ग्रहण करके धारक व्यक्ति के शरीर में पहुँचाता है। ज्योतिषियों तथा प्राचीन ऋषि महर्षियों ने अपने अनुभव के आधार पर निर्धारित किया।
कि किस ग्रह की कितनी रश्मि शक्ति मनुष्य के लिए कल्याणकारी व जीवनदायी होती है।
दूसरे किस ग्रह की रश्मियों का कैसा सामन्जस्य जातक के लिए कल्याणकारी होगा। इसी आधार पर उन्होंने विभिन्न ग्रहों के लिए विभिन्न रत्न धारण करने का परामर्श दिया है।
कारण कि एक विशिष्ट रत्न में एक विशिष्ट ग्रह की रश्मियों को अपने में शोषित करने की प्रबल शक्ति होती है।
जिस प्रकार एक वस्तु से दूसरी बस्तु में विद्युत प्रवाहित करना सम्भव होता है। उसी प्रकार वह रत्न उन विशेष रश्मियों को शोषित कर मानव शरीर में प्रवाहित कर देता है।
जिस प्रकार जिस पौष्टिक तत्व की कमी से शरीर कमजोर और रोगग्रस्त हो जाता है, तो उसकी पूर्ति के लिए डाक्टर दवाईयाँ खाने को बताता है।
ठीक उसी प्रकार जो ग्रह व्यक्ति के लिए कष्टकारक होता है। उस व्यक्ति को बहुत मुसीबत व कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है व हानि होती है।
इसके निवारण के लिए अमुक व्यक्ति के उस ग्रह को सबल बनाने के लिए उससे सम्बन्धित विशिष्ट रत्न को पहना जाता है। जिसमें उस ग्रह की रश्मियों को शोषित करने की प्रबल क्षमता होती है।
अत: वह व्यक्ति उस रत्न को धारण कर उसके द्वारा उस दुर्बल ग्रह की क्षीण रश्मि को पूरा कर उसके प्रभाव को सबल बनाता है। इसलिए कमजोर ग्रह की पुष्टता के लिए उससे सम्बन्धित रत्न को धारण किया जाता है।
Surya | सूर्य
इसमें राजदूतावास, जुआ, सट्टा, वस्त्र का व्यापार, जवाहरात का कारोबार, दवाइयाँ, फोटोग्रॉफी, ऊनी वस्त्र, चाय का रोजगार, इंजीनियरिंग जब विद्युत सम्बन्धी कार्य करना अति उत्तम है।
यह बड़े भाई का गुण पितृ, यश, दाँयी आँख, कार्य, ज्ञान, आत्मा, प्रभाव, आरोग्य, मन की शुद्धता को बढ़ाता है, तथा हृदय, पीठ, नाड़ी, राज्य कृपा व हड्डियों का प्रतिनिधित्व करता है।
Surya Mantra | सूर्य मन्त्र
”ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:”
Chandrama | चन्द्रमा
यह स्मरण शक्ति, भावनाएँ मनोविकार, बाँयी आँख, फेफड़े, छाती, माता, यश, मन, बुद्धि, सम्पत्ति, मातृ चिन्ता, कृषि कर्म, निन्दा, ललित कलाओं के प्रति प्रेम आदि।
औषधि क्षेत्र में व अनाज के व्यापार आयात-निर्यात, रेलवे, जहाज, श्वेत रंग की वस्तु, चाँदी, मोती आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
Chandrama Mantra | चन्द्रमा मन्त्र
”ऊँ सों सोमाय नम:”
Mangal | मंगल
वीरता, धैर्य, साहस, युद्ध, लूटमार, प्रदोष, गर्भ, प्रदर, रक्तपित्त, वायु खुजली, हड्डी के आन्तरिक तत्व, मज्जा, पुलिस विभाग, सेना विभाग स्वदेश प्रेम व रक्षा कार्य आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
Mangal Mantra | मंगल मन्त्र
”ऊँ अं अंगारकाय नम:”
Budh | बुध
बुद्धि तत्व का स्वामी होने के कारण बुद्धि पर, शरीर में वक्ष, वाणी, मस्तिष्क, शिरोभाग, अन्त: संरचना, वायु तथा रक्त दोष, भौतिक कष्ट आदि पर प्रभाव डालता है।
परिणाम स्वरूप स्मृति हास, शिरा रोग, उन्मत्तता, श्वास काल, वाणी दोष, मुख, कण्ठ विकार तथा श्वास रोग व बुरी कल्पनायें तथा व्यवसाय, बैंक, बीमा शेयर से युक्त व्यसाय और विद्या के क्षेत्र में ज्योतिष ज्ञान वाग्मिता मनोविज्ञान आदि पर बुध का प्रभाव है।
Budh Mantra | बुध मन्त्र
”ऊँ बुं बुधाय नम:”
Brhaspati | बृहस्पति
बृहस्पति का क्षेत्र निम्न व्यवसायों पर प्रभाव डालता है। जैसे नौकरी, लोकसभा, विधान सभा की सदस्यता, न्यायाधीश, लेखक, प्रकाशक, काव्य, राज्य कृपा तथा महत्वपूर्ण पद को प्राप्त कराने वाला है।
साथ ही मांगलिक कार्य, शिक्षा, तीर्थ यात्रा, धार्मिक कार्य, वेद पाठन, स्वर्ण, ‘फसल, पुत्र, ज्ञान, बातरोग, शरीर पुष्टता, कण्ठ रोग, योनि रोग, मैत्री गुण, यन्त्र-मन्त्र भक्ति।
संकट में धैर्यता, सहायता करने की भावना, सादा रहन-सहन आदि क्षेत्रों पर प्रभाव रखता है।
Brhaspati Mantra | बृहस्पति मन्त्र
”ऊँ बृं बृहस्पतये नम:”
Shukra | शुक्र
शुक्र के क्षेत्र वस्त्र, रत्न, भूषण, धन, इन्न, पुष्प, सुगन्धित द्रव्य, गीत, काव्य, कोमलता, यौवन, वैभव, साहित्य चर्चा, वशीकरण, इष्ट की सिद्धि।
इसके अतिरिक्त कला प्रेम, मधुर वाणी, गायन, वादन, फर्नीचर, स्त्री सम्बन्धकार, वायुयान, कामाग्नि, कामेच्छा, हँसी मजाक, नृत्य, विलास, वीर्य रमण, शैया स्थान, विवाह, इन्द्रजाल, आँख, रक्त, कफ, स्त्री दुख है।
यह रोग में प्रमेह, वीर्य विकार, मन्द बुद्धि, पुरुषार्थ, नर्स प्रशिक्षण, अधिकारी स्वतन्त्रता, व्यवसाय, प्राचीन संस्कृति का अभिमान, स्टेशनरी, मिष्ठान, व्यभिचार, मद्य उद्योग, अण्डाशय, उदर दाह, कन्या, संतान आदि पर प्रभाव डालता है।
Shukra Mantra | शुक्र मन्त्र
”ऊँ शुं शुक्राय नम:”
Shani | शनि
शनि शरीर के वात संस्थान, पुंसत्व, स्तायु, मण्डल और गुह्म प्रदेश को विशेष रूप से प्रभावित करता है।
जिस कारण से प्रेरित होकर मनुष्य आपराधिक कृत्य, चोरी, डकैती, ठगी, कुसंगति, पारिवारिक कलह तथा बैर विरोध की उत्पत्ति करता है।
यदि शनि शुभकारक स्थिति में हो तो काले रंग, लोहा व्यवसाय, यन्त्रिकी, तैलीय पदार्थ, चर्म उद्योग आदि में सहायक होता है, तथा बुद्धि विकास पाकर मनुष्य सिद्ध सन्त, सन्यासी, वकील, दार्शनिक और योगी भी बन जाते हैं।
Shani Mantra | शनि मन्त्र
”ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:”
Rahu | राहु
कुतर्क करना, दूसरों की गलतियाँ निकालना, भ्रम, अफवाहें फैलाना, प्रचार विभाग, पूर्वजों का गुणगान, लॉटरी लगाना, आकस्मिक कार्य, गड़ा हुआ धन मिलना। उपरोक्त लक्षण राहु से सम्बंधित माने जाते है।
Rahu Navagraha Mantra | राहु नवग्रह मन्त्र
”ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:”
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