जोशीमठ ( joshimath ) भारत के राज्य उत्तराखंड में  चमोली जिले का एक कस्बा है। हिन्दू धर्म एवं आस्था के लिए जोशीमठ का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

यह शहर हिमालय में पहाड़ों पर लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है,तथा अपने प्रसिद्ध मंदिर, शंकर मठ के लिए जाना जाता है, जो एक लोकप्रिय हिंदू तीर्थ स्थल है। 

यह शहर ट्रेकिंग के क्षेत्र में तथा अन्य साहसिक खेलों जैसे स्कीइंग एवं व्हाइट वाटर राफ्टिंग के लिए भी जाना जाता है। 

यह बद्रीनाथ के प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल के रास्ते में स्थित है, तथा  कई यात्री मंदिर जाने के रास्ते में जोशीमठ में ही रुकते हैं।

यह शहर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख हिन्दू पीठों में से एक है। जिसकी वजह से हिन्दू धर्म में इसकी मान्यता और भी अधिक बढ़ जाती है। 

History of Joshimath | जोशीमठ का इतिहास

जोशीमठ एक प्राचीन भारतीय शहर है, जिसका वैदिक काल से पुराना इतिहास है। इसका उल्लेख हिंदू शास्त्रों में भगवान विष्णु के 108 “दिव्य देशम” या पवित्र मंदिरों में से एक के रूप में किया गया है। 

यह शहर प्रसिद्ध हिंदू संत आदि शंकराचार्य से भी जुड़ा हुआ है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने 8वीं शताब्दी में जोशीमठ का दौरा किया था तथा वहां  शंकर मठ मंदिर की स्थापना की थी। 

यह शहर बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी रहा है तथा सदियों से कई बौद्ध विद्वानों एवं  भिक्षुओं ने यहां की यात्रा की है।

हाल के इतिहास में, जोशीमठ हिमालय पर्वत श्रृंखला एवं इसके समृद्ध सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास से निकटता के कारण एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ है।

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Why Joshimath is famous? | जोशीमठ क्यों प्रसिद्ध है?

जोशीमठ हिंदू तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है तथा यहां हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। इस शहर में शंकर मठ मंदिर स्थित है। 

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source : Google Map

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा आठवीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक एवं धर्म शास्त्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार  मठों में से एक है। 

इस मंदिर को हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है तथा यह माना जाता है कि इसमें महान आध्यात्मिक शक्तियां निवास करती हैं।

जोशीमठ में शंकर मठ मंदिर के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर एवं अन्य पूजनीय स्थल भी शामिल हैं। इन स्थलों का हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। 

ऐसा ही एक स्थान कल्पवृक्ष वृक्ष भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसके नीचे प्रार्थना करने वालों की सभी मनोकामना पूरी होती है। 

जोशीमठ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ के प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल के रास्ते में यह शहर एक लोकप्रिय पड़ाव भी है। 

मान्यता के अनुसार जोशीमठ में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये बिना बद्रीनाथ का तीर्थ पूर्ण नहीं होता। इसलिए लोग यहां रुकते ज़रूर हैं। 

What happened at Joshimath? | जोशीमठ के दरकने के पीछे का रहस्य

हिमालय की तलहटी में स्थित, जोशीमठ एक प्राचीन भूस्खलन के स्थल पर स्थित उत्तराखंड का एक छोटा सा शहर है, जो पिछले कुछ दशकों में निर्माण एवं जनसंख्या का विस्फोट देखा है।

भगवान बद्रीनाथ का शीतकालीन निवास, चीन-भारतीय सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए एक मंचन स्थल, तथा हिमालयी अभियानों के लिए एक प्रकार का आधार शिविर, जोशीमठ आज डूब रहा है धंस रहा है। यही कारण है की लोग इसे “sinking town” भी कहने लगे है।

आज मानवीय गलतियों की एक पुरानी श्रृंखला के दुष्प्रभाव के कारन हज़ारों ज़िंदगियाँ अपने भविष्य की और वर्तमान के अँधेरे में से रौशनी की एक झलक के लिए ऑंखें बिछाए खड़ी है। 

इसके दरकने के पीछे के तीन प्रमुख कारकों में से एक  जोशीमठ की कमजोर नींव हैं, क्योंकि यह एक सदी से भी अधिक समय पहले भूकंप के कारण हुए भूस्खलन के मलबे पर विकसित किया गया था। 

भूकंपीय क्षेत्र  में इसका स्थान आता है, जो भूकंप के प्रति अधिक प्रवण होता है, इसके अलावा धीरे-धीरे अपक्षय एवं पानी का लगातार  रिसाव होता है जो संसक्ति को कम करता है। 

लगातार पानी के रिसाव की  वजह से मिटटी एवं चट्टानें कमज़ोर हो रही है, जिसकी वजह से उन पर बने घरों में दरारें आने लगी एवं अब घर धंसने लगे हैं। 

काफी लम्बे समय से अलग-अलग पर्यावरणविदों के द्वारा सरकार एवं जनता को आने वाली इस विपदा से अवगत कराया जाता रहा है। 

सबसे पहले  1886 में एटकिंस ने हिमालय गजेटियर में भूस्खलन के मलबे पर जोशीमठ के बारे में लिखा था।  उसके पश्चात् भी समय-समय पर इसके विषय में लेख एवं सम्बंधित तथ्य प्रकाशित होते रहे हैं। 

आगे चलकर मिश्रा समिति ने 1976 में अपनी रिपोर्ट में एक पुराने भूस्खलन के उप-क्षेत्र में इसके स्थान के होने बारे में लिखा था।

इस बारे में बताया गया था, कि हिमालयी नदियों के नीचे जाने एवं पिछले साल ऋषि गंगा तथा धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ के अलावा भारी बारिश से भी स्थिति और खराब हो सकती है।

चूंकि जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब एवं स्कीइंग स्थल औली का प्रवेश द्वार है, इसलिए इस क्षेत्र में बेतरतीब निर्माण गतिविधियां लंबे समय से चल रही हैं। 

लोग  बिना इस बारे में सोचें, कि शहर किस दबाव से निपटने में सक्षम है या नहीं सिर्फ व्यावसायिक लाभ की गति को बढ़ाने के लिए अंधाधुंध निर्माण एवं खुदाई कार्य किये जा रहे हैं। 

होटल एवं  रेस्तरां हर जगह कुकुरमुत्तों की तरह पूरे पहाड़ी क्षेत्र में उग आए हैं। आबादी का दबाव एवं  पर्यटकों की भीड़ का आकार भी कई गुना बढ़ गया है। जो प्राकृतिक आपदा को न्योता दे रहा है। 

इस वजह से आज पूरा जोशीमठ इस समस्या का सामना कर रहा है, जिसके फलस्वरूप आने वाले समय में कस्बे में कई घरों के बचने की संभावना नहीं है। 

उनमें रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए क्योंकि जीवन अनमोल है, तथा इस विनाशकारी निर्माण योजनाओं को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। 

प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की सुरक्षा के लिए निकासी के बाद, शहर का माइक्रोजोनेशन, इसके जल निकासी प्रणाली की पुनर्योजन एवं वर्षा जल आउटलेट के अलावा चट्टान की ताकत का आकलन किया जाना चाहिए।

इस शहर में ऊपर की ओर धाराओं से रिसाव देखा गया है, जिसने जोशीमठ की मिट्टी को ढीला कर दिया है। भूमिगत नाले गायब हो गए हैं। 

यह नाले पूरी तरह से मैला पानी लाते हुए, नीचे की ओर आते हैं, एवं फिर धौलीगंगा या अलकनंदा (विष्णुप्रयाग से परे) में शामिल हो जाते हैं। 

जोशीमठ शहर की जल निकासी व्यवस्था ठीक नहीं है। प्रत्येक दिन के उपयोग से उत्पन्न अपशिष्ट जल अनुचित रूप से नालियों के माध्यम से बहता है, जो ज़मीन में मिटटी की पकड़ को कमज़ोर कर देता है। 

2013 की हिमालयी सूनामी से आए कीचड़ ने भी नालों को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे इस क्षेत्र में ज़मीन का क्षरण भी हुआ है। 

ऋषिगंगा बाढ़ आपदा ने भी स्थिति को और खराब कर दिया, इसके बाद 2021 में अगस्त से अक्टूबर के बीच लगातार बारिश हुई। 

Possible Solutions | समस्या के समाधान के उपाय 

पर्यावरण विशेषज्ञ क्षेत्र में विकास एवं  पनबिजली परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करने की सलाह देते हैं। तभी इस समस्या के विस्तार पर रोक लगाई जा सकती है।  

लेकिन तत्काल आवश्यकता है कि निवासियों को एक सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किया जाए एवं  फिर नए घर और बदलते भौगोलिक कारकों को समायोजित करने के लिए शहर की योजना की फिर से कल्पना की जाए।

ड्रेनेज योजना इस समस्या के सबसे बड़े कारणों में से एक है, जिसका अध्ययन और पुनर्विकास करने की आवश्यकता है। 

शहर खराब जल निकासी एवं सीवर प्रबंधन से पीड़ित है, क्योंकि अधिक से अधिक कचरा मिट्टी में रिस रहा है, इसे भीतर से ढीला कर रहा है। 

इसी कारण तत्काल प्रभाव से राज्य सरकार ने सिंचाई विभाग को इस मुद्दे पर गौर करने एवं जल निकासी व्यवस्था के लिए एक नई योजना बनाने के लिए कहा है।

विशेषज्ञों ने मिट्टी की क्षमता को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से संवेदनशील स्थलों पर क्षेत्र में वृक्ष पुनर्रोपण का भी सुझाव दिया है। 

जोशीमठ को बचाने के लिए बीआरओ जैसे सैन्य संगठनों की सहायता से सरकार और नागरिक निकायों के बीच एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।

उपरोक्त प्रयासों को तेज़ी प्रदान करते हुए तथा सबसे पहले स्थानीय निवासियों के वहां से सुरक्षित पुनर्वास की योजना बना कर जोशीमठ जैसे प्राचीन शहर को बचाया जा सकता है। 

आगे भी उत्तराखंड ही नहीं अन्य हिमालयीन एवं पहाड़ी  क्षेत्रों में होने वाले ऐसे नुकसान से बचने के लिए प्रकृति के साथ किय जाने वाले खिलवाड़ पर रोक लगा देनी होगी, तभी संतुलन को बनाया रखा जा सकता है। 

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