भारत की एकता में अनेकता की विशेषता को सारे संसार में सबसे ऊपर रखने में यहाँ के उत्सवों एवं त्योहारों का सबसे महत्वपूर्ण योगदान प्राचीन काल से रहा है।
यहाँ की पवन धरती ने हमेशा से अलग-अलग धर्मों,संस्कृतियों एवं भाषाओं के लोगों का खुले हाथों से स्वागत किया है, तथा उनके साथ उनके त्यौहार एवं उत्सव भी भारत भूमि की अनमोल विरासत का हिस्सा बन चुके हैं।
भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है, जन्माष्टमी एवं भारत के कई हिस्सों में दही हांड़ी (Dahi Handi Celebration) के रूप में भी मनाया जाता है।
भारत में कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) का त्यौहार भगवान कृष्ण के जन्म के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण भगवान के बाल-स्वरूप को भक्तजन प्यार से कान्हा या बाल गोपाल के नाम से पुकारते है।
भगवान कृष्ण मथुरा नरेश कंस की बहन देवकी तथा वासुदेव के पुत्र थे। उन्हें कंस के प्रकोप से बचाने के लिए उनके पालक माता-पिता नंद और यशोदा ने वृंदावन में पाला था।
दही हांड़ी का उत्सव जन्माष्टमी के दौरान मुख्य रूप से महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्यों में अत्यंत प्रसिद्ध है। दही, माखन आदि से भरा मिट्टी का बर्तन या हांडी ऊंचाई पर लटका दिया जाता है।
युवक एवं युवतियों के समूह एक दूसरे के ऊपर चढ़कर मानव पिरामिड बनाते हैं तथा मक्खन या दही से भरे मिट्टी के बर्तन को तोड़ते हैं।
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Dahi handi relevance | दही हांड़ी का इतिहास
इतिहासकारों एवं हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, लड्डू गोपाल या भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप को वृंदावन में बड़े होने पर सफेद मक्खन (माखन), दही एवं दूध बहुत पसंद था।
बाल गोपाल की माखन एवं दही चुराकर खाने की आदत को लेखकों द्वारा बाल लीला के रूप में ग्रंथों में उल्लेखित किया गया है।
बाल गोपाल की इसी आदत के कारण उनको माखन चोर के नाम से पूरा नंद गांव पुकारा करता था। सभी गाँव वासी उनकी इस बाल लीला को छिपकर देखा करते थे।
उनकी मां यशोदा उनकी माखन चोरी की आदत से बहुत परेशान एवं शर्मिंदा रहा करती थी। इसलिए वह भगवान कृष्ण को बांधती थी।
माता यशोदा गाँव की अन्य महिलाओं से कहती थी कि वे अपना मक्खन, दही और दूध एक हांडी में ऊँचाई पर बाँध लें ताकि वह उस तक न पहुंच सके।
कृष्ण एवं उनके दोस्तों द्वारा हांडी तक पहुंचने, उसे तोड़ने और आपस में बांटने के लिए मानव पिरामिड बनाए जाते थे । इसलिए, ‘दही हांडी’ को उनके बचपन के दिनों की मीठी याद के रूप में मनाया जाता है।
दही हांडी का महत्व
यह उत्सव आपसी टीम वर्क, समन्वय, फोकस एवं शक्ति प्रदर्शन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। साल भर तक दही हांडी के उत्सव में भाग लेने के लिए समर्पित टीमों को प्रशिक्षित किया जाता है।
इसमें भाग लेने वाली टीम मानव पिरामिड बनाती है तथा प्रत्येक पिरामिड में नौ परतें हो सकती हैं। इसी कारण भाग लेने वाले प्रतियोगी साल भर मेहनत एवं प्रशिक्षण लेते हैं।
मानव पिरामिड बनाते समय खासतौर से निचले स्तरों में मजबूत लोग शामिल होते हैं, जो अपने कंधों पर दूसरों का भार सहन कर सकते हैं, और शीर्ष के पास एक ऊर्जावान बच्चा होता है जो हांडी को पकड़कर तोड़ सकता है।
मानव पिरामिड बनाने वाले प्रतिभागियों को ‘गोविंदा’ कहा जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस अनुष्ठान के पीछे युवा मन में भाईचारा, शक्ति एवं समन्वय विकसित करना होता है, ताकि वे एक-दूसरे के साथ खड़े हों।
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दही हांड़ी एवं बच्चों का सम्बन्ध
दही हांड़ी के उत्सव को मनाये जाने के मूल में क्योंकि बागवान कृष्ण का बाल स्वरूप जुड़ा होता है, इसलिए बच्चों के बिना इसकी कल्पना करना भी व्यर्थ होगा।
भले ही मानव पिरामिड के निर्माण का हिस्सा युवा पुरुष बनते हों, किन्तु मटकी फोड़ने के लिए पिरामिड के ऊपर बच्चों को ही खड़ा किया जाता है।
बच्चों को इस दही, माखन की हांड़ी फोड़ने पर जहाँ मिठाइयां एवं अन्य उपहार प्राप्त होते हैं, क्योंकि उनका बाल मन इन्ही में सच्ची संतुष्टि प्राप्त कर लेता है।
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दही हांड़ी का उद्देश्य
दही हांड़ी का उत्सव मनाने को लेकर अलग-अलग लोगों के विचारों में आपको विभिन्नता देखने को मिलेगी, किन्तु इसके पीछे छिपा सत्य लोगों को भेदभाव भूलकर एक होने का सन्देश है।
भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की कथा सुनने पर हमको ज्ञात होगा, कि कैसे एक क्षत्रिय परिवार में जन्म लेकर एक ग्वाले के यहाँ अपना लालन-पालन करना उनकी भेदभाव को दूर करने के लिए पहला कदम था।
भले ही कृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में मान्यता प्राप्त है, किन्तु वो पूरी तरह से आम लोगों के हीरो के रूप में हिन्दू ग्रंथों में देखे जाते हैं।
धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण जब अपने बाल्यकाल में गांव वासियों से माखन चुराते थे, तो सबसे पहले उन मित्रों को खिलाते थे जो निर्धन थे।
श्री कृष्ण के उपदेश अनुसार यदि किसी व्यक्ति के पास कोई भी वस्तु आवश्यकता से अधिक होती है, तो सबसे पहले उसे उसका दान करना चाहिए।
उसके बाद में ही उसे संचय करना चाहिए, तभी उसका संचय सफल होकर उसके भविष्य की सच्ची निधि बन सकता है। कहा जाता है कि उस दौरान दूध, माखन एवं दही को एक तरह से धन का प्रतीक माना जाता था ।
भारत के त्योहारों में सबसे रंगोंभरा त्यौहार है। होली जिसमे भारत की रंगबिरंगी छठा देखते ही बनती है। होली उत्सव को अधिक गहराई से जानने के लिए Holi अवश्य पढ़े।
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इस दिन व्रत करने का महत्व
शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी को जया अष्टमी के रूप में भी उल्लेखित किया जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ जीत दिलाने वाला दिन भी होता है।
इसी कारणवश मान्यता है कि जो विश्वासी इस दिन सच्चे मन से उपवास या व्रत करता है,वह हर बुराई एवं शक्तियों पर विजयी होता है।
उपवास करना आपको अपनी हर इच्छा एवं लालच पर नियंत्रण करना भी सिखाता है। आप जितना अपनी इच्छाओं पर काबू पाएंगे उतनी आपकी आंतरिक शक्ति का विकास हो पायेगा।
Dahi Handi in Mumbai | मुंबई की दही हांड़ी
महाराष्ट्र एवं भारत के आर्थिक राजधानी मुंबई जन्माष्टमी के दिन विशाल दही हांड़ी आयोजनों के कारण भारत में सबसे बड़े दही हांड़ी कार्यक्रमों की गवाह बनती है।
मुंबई के घणसोली गांव से लगभग 107 साल पहले दही हांड़ी मनाने की परंपरा का शुभारम्भ हुआ था। यहाँ के हनुमान मंदिर में एक सप्ताह पहले से ही इस उत्सव की शुरुआत हो जाती है।
उसके बाद धीरे-धीरे सारा मुंबई इस उत्सव से जुड़ गया तथा पूरा शहर जन्माष्टमी के दिन भगवान् कृष्ण के भक्ति में डूब कर दही हांड़ी का उत्सव मनाता है।
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