भारत भूमि को सम्पूर्ण संसार में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इसके लिए यहाँ के संस्कृति, धर्म एवं परम्पराओ का समान रूप से योगदान है।

यहाँ निवास करने वाले लोग जिन धर्मों संस्कृतियों या परम्पराओं में विश्वास रखते हैं, उनमें सबसे खास बात यह है कि यहाँ नारी शक्ति का हमेशा सम्मान किया जाता है। 

भारत के अलग-अलग प्रांतों में विभिन्न धर्मो में विश्वास करने वाले लोग निवास करते है, जो अपनी धार्मिक आस्थाओं के आधार पर विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं। 

इसी प्रकार पश्चिम बंगाल राज्य में माँ दुर्गा एवं काली जी को अत्यंत श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है, इसलिए लोग शक्ति के दो स्वरूपों काली पूजा (Kali Pooja) एवं माँ दुर्गा की आराधना अत्यंत धूमधाम से संपन्न करते हैं। 

माँ काली भगवान शिव के नारी शक्ति के 10 विभिन्न रूपों में पहले स्थान पर आती हैं। हिन्दू धर्म के धर्म ग्रंथों में माँ काली के अलग-अलग स्वरूपों का विस्तृत विवरण देखने को मिलता है। 

माँ काली के बहुत सारे स्वरुप हैं जिनकी पूजा लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार प्राचीन काल से करते चले आ रहे हैं। माँ काली के  दक्षिण, सिद्ध, गुह्य, भाद्र, श्मशान, रक्षा एवं महाकाली के स्वरूप सर्वाधिक आराध्य हैं। 

माँ काली का दक्षिणमुखी स्वरूप अपने सबसे वीभत्स रूप में प्रकट होता है तथा सर्वाधिक आराधनीय भी है। माँ काली का यह स्वरूप बंगाली समाज में सबसे प्रसिद्ध है। 

Incarnation | काली अवतरण की कथा 

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हिन्दू धर्म के विश्वासियों द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है, दीपावली (Deewali ) जिसे भारत की पहचान के रूप में समस्त संसार में जाना जाता है। वही समस्त बंगाल में इसे काली पूजा के रूप में मनाया जाता है।

इसकी शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) के साथ होती है एवं पाचवे दिन भाई दूज (Bhai Dooj) से समाप्ति होती है।

माता काली की पूजा हिन्दू धर्म में बहुत सारी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए लम्बे समय से की जाती आ रही है। इनके इस स्वरुप को देखकर सभी के मन में उनके इस रूप के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है। 

माँ काली का वीभत्स रूप हमेशा से ही उनके अनुयायियों के लिए सोच का विषय रहा है, अक्सर लोगों के मन में उनको देखकर भय एवं विस्मय के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। 

काली जी के अवतरण या जन्म को लेकर अक्सर लोग बहस करते देखे जाते है, क्योंकि उनकी तर्क शक्ति उन्हें ऐसा करने के लिए विवश करती है। 

कई लोगों के लिए ब्रह्म सर्वोच्च सत्य नारी शक्ति के रूप में प्रकट होता है,जो देवी काली का स्वरुप है। वह अपने उपासकों के लिए कई अलग-अलग रूप से महत्व रखती है।

देवी काली की उत्पत्ति को लेकर कुछ सामान्य कारण समान रूप से विश्वसनीय रहे हैं तथा उनका जन्म संसार को राक्षसी शक्तियों से मुक्ति प्रदान करने के लिए हुआ। 

धर्म शास्त्रों के अनुसार माँ काली के वीभत्स स्वरूप का एक कारण उस बुराई की भयानक प्रकृति भी है, जिसके कारण अत्यधिक क्रोध ने माता का स्वरूप भी भयानक कर दिया। 

गणेश उत्सव (ganesh chaturthi), दुर्गा पूजा (Durga Puja), नवरात्री (navratri) और गरबा (garba) की भी चमक धमक देखने लायक होती है। अधिक जानने के लिए उपरोक्त लिंक पर क्लीक करे एवम सम्पूर्ण विवरण प्राप्त करे।

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देवी महात्म्य के अनुसार देवी काली का जन्म

देवी महात्म्य के अनुसार कहा जाता है, कि मां काली देवी दुर्गा के माथे पर एकत्रित क्रोधित ऊर्जा से अवतरित हुई थी। 

इस कथा के अनुसार उनके इस रूप को देवी दुर्गा के क्रोध की अभिव्यक्ति का एक प्रतीक कहा जाता है, जिसने राक्षसी शक्तियों का विनाश किया। 

माँ दुर्गा के इस वीभत्स स्वरूप माता काली ने ही चंड-मुंड नामक दानवों का वध किया तथा आगे चलकर रक्तबीज का भी अंत किया। 

मान्यता अनुसार दानवों के विनाश के पश्चात् भी माँ काली का क्रोध शांत नहीं हुआ और वह अपने क्रोध की अग्नि में स्वयं ही जलने लगी। 

तब भगवान शिव को काली माँ के गुस्से को शांत करने के लिए स्वयं को उनके चरणों में अर्पित कर दिया। जिससे उनका क्रोध शांत हुआ और वह अपने पूर्व स्वरूप में आ सकीं। 

काली माँ का जन्म एवं दानव दारिका 

भारत के दक्षिणी राज्य केरल  में यह मान्यता है, कि माता काली का जन्म महा दानव दारिका का वध करने के लिए हुआ था। जिसका अधिकार तीनो लोकों पर हो चुका था। 

कथा अनुसार जब द्वारिका का पाप अत्यधिक बढ़ गया तो नारद मुनि ने सभी की व्यथा शिवजी को सुनाई, जिसे सुनकर महादेव का क्रोध अपनी सीमा लाँघ गया, तथा उनका त्रिनेत्र खुल गया। 

कहा जाता है भोलेनाथ के इसी त्रिनेत्र से धधकती क्रोध अग्नि से काली जी का जन्म हुआ। काली के जन्म की यह कथा केरल में प्रसिद्ध है, तथा वहां उन्हें भद्र कालिका के रूप में पूजा जाता है। 

दारिका एवं काली के बीच हुई लड़ाई ने पूरे ब्रह्मांड को हिलाकर रख दिया। एक लंबे युद्ध के बाद उसने दारिका का काली ने वध कर संसार को उसके अन्याय से मुक्त कराया।

एक अन्य किंवदंती के अनुसार कहा जाता है, कि काली देवी पार्वती का ही अवतार हैं, इस प्रकार वह भगवान शिव की पत्नी ही हैं। 

काली पार्वती का भयानक एवं  हिंसक रूप है, वही करुणामय रूप में पूजनीय एवं दया करने वाली पार्वती ‘शांत स्वरूपिनी’ हैं। 

यहां  ध्यान देने वाली बात यह है कि काली जिन राक्षसों से लड़ती हैं, वे सभी भयानक प्रकृति के हैं। उन दानवों का वध करने के लिए देवी को अपनी शक्ति के सर्वोच्च स्तर प्राप्त करना पड़ा। 

एक दानव रक्त की एक बूंद से हजारों राक्षसों को उत्पन्न करने में सक्षम था और इसलिए उसे पराजित करने के लिए देवी को रक्त पीना पड़ा।

प्रतीकात्मक रूप से, देवी काली जीवन की कठोर वास्तविकताओं हिंसक प्रकृति एवं जीवित प्राणियों में हिंसा की भावना का प्रतिनिधित्व करती हैं। 

वह भेदभाव एवं वैराग्य की आवश्यकता को दर्शाती है तथा यह सिद्ध करती है कि अच्छाई एवं  बुराई एक ही स्रोत से उत्पन्न होती है।

Kali Pooja in Bengal | काली पूजा एवं बंगाली समाज 

काली पूजा एवं भारत में बंगाली समुदाय का चोली दामन का रिश्ता है। माँ दुर्गा एवं उनका क्रोधित रूप माँ काली बंगाली समाज में अत्यंत आदरणीय है। 

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एक और जहाँ माँ दुर्गा बंगाली मान्यता अनुसार उनके जीवन में सुख समृद्धि लाती है, वही माता काली संसार से सभी बुराइयों का विनाश करती है। 

सम्पूर्ण भारत जिस दिन दिवाली का उत्सव मनाता है,वही बंगाली समुदाय माँ काली की आराधना में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर संसार को पापियों से मुक्त करने की प्रार्थना करता है। 

बंगाल में पांच दिनों तक शक्ति के स्वरूप की पूजा आराधना की जाती है, जिसमें आखिरी दिन माँ काली को समर्पित होता है। 

ऐसा कहा जाता है, कि चूंकि देवी काली अपने तेज क्रोध वाले स्वभाव के लिए जानी जाती हैं, इसलिए इनकी पूजा को बहुत अधिक ध्यान एवं  समर्पण के साथ करना होता है।

बंगाली हिंदु समुदाय का मानना ​​​​है, कि सभी जीवित प्राणियों की सर्वोच्च मां काली शक्ति की अंतिम अभिव्यक्ति है। वह न तो शांत है ,न ही धैर्यवान। वह बुराई के विनाश के लिए ही अवतरित हुई है। 

देवी भगवान शिव की शक्तियों का ही  एक विस्तार है, उनकी पत्नी, जिन्हें विनाश के देवता के रूप में जाना जाता है। इसलिए, उन्हें कई लोगों द्वारा विनाश की देवी माना जाता है। 

काली पूजा समारोह

काली पूजा पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है। चूंकि देवी विध्वंसक की भूमिका निभाती हैं, इसलिए उन्हें उस बुराई को नष्ट करने के लिए कहा जाता है, जो किसी व्यक्ति के भीतर रहती है। 

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उन्हें युद्ध, बाढ़ एवं  सूखे जैसी आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि उनकी प्रार्थना करने से भक्त को अच्छा स्वास्थ्य, धन, शांति और खुशी मिलती है

बंगाल में काली पूजा की तैयारी दिवाली की लक्ष्मी पूजा की तरह ही होती है। घरों को भव्य रूप से सजाया जाता है, देवी के स्वागत के लिए घर के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। 

पूजा शुरू होने से पहले उनके सम्मान में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं, देवी के चित्र या मूर्तियाँ हमेशा उन्हें अपनी जीभ बाहर लटके हुए दर्शाती हैं। 

यह माँ के आश्चर्य एवं पश्चाताप की अभिव्यक्ति को दिखाने के लिए है, जब उन्होंने भगवान शिव की छाती पर पैर  रखा।

काली पूजा को महान शक्ति के सम्मान में किया जाता है। यह पूजा हमेशा शाम के समय की जाती है, शक्ति के स्रोत के रूप में इसकी धारणा के कारण, कई साधु आधी रात से ठीक पहले इस पूजा को करते हैं। 

काली के स्वरूप का अर्थ 

माँ काली की जिस छवि को हम देखते है, उसमे प्रत्येक प्रतीक का अपना एक अर्थ छिपा है, जो माँ काली के स्वभाव एवं उससे जुड़े अर्थ को दर्शाता है। 

मां काली का रंग– काला रंग प्राकृतिक एवं रहस्यवादी होता है।

काली का नग्न रूप – वह एक पारदर्शी आत्मा को दर्शाता है जो सभी भ्रमों से मुक्त है।

50 नरमुंड की माला – ये नरमुंड सत्य एवं संस्कृत शास्त्रों के प्रतीक हैं।

सफेद दांत एवं  लाल जीभ – सफेद दांत आंतरिक शुद्धता का एक रूप है, वहीँ  लाल जीभ उनके अभेद्य प्रकृति एवं       अविवेकी स्वभाव को दर्शाती है।

कटा हुआ सिर एवं  हाथ में तलवार – ज्ञान एवं सत्य की जीत तथा  अज्ञानता के विनाश का प्रतिनिधित्व करता है।

त्रिनेत्र – तीन आंखें भूत, वर्तमान एवं भविष्य तथा  सूर्य, चंद्रमा एवं अग्नि के समय की विशेषता दर्शाती हैं।

काली पूजन सामग्री 

माँ काली की पूजा के लिए आपको किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि माँ केवल अपने भक्त के मनोभावों एवं श्रद्धा को देखती है, फिर भी पूजन में आपको जो सामान लगेगा वह इस प्रकार है –

  • अगरबत्ती एवं धुप 
  • लाल गुड़हल का फूल 
  • सिन्दूर एवं रक्त चन्दन 
  • नारियल 
  • अखंडित चावल 
  • दूर्वा घास
  • लेखनी एवं दवात 
  • माँ काली की तस्वीर या मूर्ति 
  • काली पूजा विधि  

यह त्योहार दुर्गा पूजा के समान ही मनाया जाता है तथा विशाल मूर्तियों, मंचों एवं फूलों की सजावट के साथ भव्य पंडाल सबका ध्यान आकर्षित करते है।

सार्वजनिक मैदानों में माँ काली की विशाल मूर्तियां स्थापित की जाती है तथा पूरी भक्ति एवं विधि विधान से उनकी पूजा की जाती है। 

प्रसाद के रूप में खिचड़ी या लबरा वितरित किया जाता है, जो विभिन्न प्रकार की दालों, अनाज, चावल एवं सब्ज़ियों को मिलकर तैयार किया जाता है। 

काली पूजा करने की क्रमशः ब्राह्मण एवं तांत्रिक दो पद्धतिया प्रसिद्ध है।

तांत्रिक पूजा में देवी को प्रसन्न करने के लिए आधी रात को किए जाने वाले सभी संस्कार शामिल होते हैं। उसके लिए वे लाल रंग के हिबिस्कस या गुड़हल के फूल, लाल सिंदूर, खोपड़ी, रक्त एवं  पशु बलि का उपयोग करते हैं। 

यह पूजा तांत्रिक सिद्धि (अलौकिक शक्तियों) को प्राप्त करने के लिए मध्यरात्रि से भोर तक की जाती है। कहा जाता है, पहले इस पूजा में नर बलि भी दी जाती थी। 

दूसरा तरीका है, ब्राह्मण पूजा जिसमे लोग अपने घरों में विधि विधान से मां काली की आराधना करते हैं। इसी पूजा के अनुसार सार्वजनिक पूजा पंडाल भी सजाये जाते है। 

माँ काली आराधना मंत्र 

ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली

चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई

अब बोलो काली की दुहाई

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा

“काली काली महाकाली कालिके पापनाशिनी

सर्वत्र मोक्षदा देहि नारायणी नमस्तेऽस्तु।

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमस्तेऽस्तु।

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।”

काली पूजा के लाभ 

ऐसा कहा जाता है, माँ काली की आराधना सच्चे दिल से करने पर भक्त की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है तथा भक्त को उसके कर्मो का पूर्ण फल प्राप्त होता है। 

  • माँ काली की पूजा करने से आपके जीवन एवं घर से पूरी तरह से नकारात्मक शक्तियों का अंत हो जाता है। 
  • काली की पूजा से बुद्धि, विवेक एवं शक्ति की प्राप्ति होती है। 
  • स्वयं को या परिवार के सदस्यों को लंबी बीमारी से छुटकारा मिलता है। 
  • किसी भी प्रकार के जादू टोने से जातक को मुक्ति मिलती है। 
  • भक्त के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि समाप्त  हो जाते हैं।
  • सभी प्रकार के कर्ज़ों से मुक्ति मिल जाती है। 
  • व्यापार एवं रोज़गार सम्बन्धी समस्याओं का अंत होता है। 
  • वैवाहिक जीवन एवं परिवार तथा दोस्ती के रिश्तों से तनाव दूर होता है। 
  • शनि-राहु की महादशा या अंतर्दशा, शनि की साढ़े साती, शनि का ढैया आदि सभी से काली पूजा द्वारा मुक्ति मार्ग प्रशस्त होता है। 
  • कुंडली में पितृदोष, काल सर्प दोष आदि से मुक्ति मिलती है। 
  • यदि आप शनिवार के दिन सरसों के तेल, काले तिल, काली उड़द आदि लेकर माता काली का विवि विधान से पूजन करते है तो शनिदोष में शांति प्राप्त होती है। 

तो दोस्तों आप भी इस बार पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से माँ काली की पूजा में शामिल होइये तथा अपने सभी कष्टों एवं बुराइयों को दूर कीजिये। 

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भारत में कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के दिन भगवान् कृष्ण के भक्ति में डूब कर दही हांड़ी का उत्सव मनाता है।

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