अत्यंत मान्यता प्राप्त कामाख्या देवी मंदिर (Kamakhya) आज तक अपने भीतर इस रहस्य को छुपाये है, कि तीन दिन तक बंद कपाट के पीछे ऐसा क्या होता है ,जो चौथे दिवस रक्तरंजीत देवी का अधोवस्त्र प्राप्त होता है।
कुछ भी आधार माना जाये किन्तु इस बात को नाकारा नहीं जा सकता कि ये मंदिर स्त्री शक्ति का साक्षात प्रमाण है। जो इस जगह के गूढ़ रहस्य को जान जाता है उसे देवी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।
मानव हृदय में ऐसी जगहों, वस्तुओं एवं लोगों के विषय में जानने को लेकर सदैव उत्सुकता बनी रहती है, जिन्हे इतिहास अपने अंदर कुछ अनछुए या रहस्यात्मक पहलुओं के रूप में छुपाये होता है।
ऐसी ही एक रहस्यात्मक एवं धार्मिक विश्वास से भरी जगह 51 शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण एवं रहस्यात्मक शक्तिपीठ है।
कामाख्या देवी शक्तिपीठ तंत्र साधना करने वालों के लिए सबसे प्रिय एवं श्रद्धा से पूर्ण स्थान है। इसको सभी गुप्त विधियों में पारंगत होने के लिए श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।
इतना ही नहीं, यह मंदिर कुलाचार तंत्र मार्ग का केंद्र भी है। यहाँ पूरे धूमधाम के साथ अंबुबाची मेला के रूप में मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है।
इस मेले में देवी के मासिक धर्म का उत्सव मनाया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु देवी से संतान प्राप्ति एवं गुप्त शक्तियों पर अधिकार का आशीर्वाद प्राप्त करने आते है।
कामाख्या देवी मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर के पश्चिमी भाग में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किमी दूर स्थित है।
यह स्थान हिंदुओं के लिए जगत जननी देवी कामाख्या की पूजा उपासना करने के लिए सबसे पवित्र स्थान है। मंदिर परिसर में देवी की दस महाविद्या रूपों में विराजित है।
यहाँ काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी एवं कमला के अलग-अलग मंदिर बने हैं। यह मंदिर तांत्रिक उपासकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
विभिन्न हिंदू ग्रंथो एवं मान्यता के अनुसार 51 तथा 108 शक्तिपीठों का वर्णन किया गया है। अधिकांश कथाओं के अनुसार “सती माता” के शरीर को भगवान विष्णु ने 51 टुकड़ों में विभाजित किया था।
जहां एक टुकड़ा गिरा, वहां एक शक्तिपीठ बन गया। मान्यता अनुसार यहाँ देवी की योनि भाग गिरा था। यही स्थान कामाख्या देवी के मंदिर के नाम से विख्यात है।
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Mythology of Kamakhya devi temple | कामाख्या पौराणिक कथा
आसपास के लोगों द्वारा बताई जाने वाली किंवदंतियों में वर्णित लोक कथाओं के अनुसार, कामाख्या मंदिर का अस्तित्व के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
कथा के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष सती एवं भगवान शिव के विवाह से कदापि प्रसन्न नहीं थे। अपने क्रोध को व्यक्त करने तथा शिव का अपमान करने के लिए उन्होंने एक महायज्ञ का आयोजन किया।
किन्तु शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से दक्ष ने सती एवं शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। माता सती अपने पिता के इस मनोभाव को समझ न सकी।
जब उनको पता चला, कि उनके पिता ने एक महायज्ञ का आयोजन किया है। भगवान शिव के लाख मना करने के बाद भी वह उस यज्ञ में शामिल होने चली गयी।
बिना बुलाए यज्ञ में पहुँचने पर माता सती के पिता द्वारा उनको अपमानित किया गया,तब उनको अपनी गलती का एहसास हुआ।
अपने अपमान को तो सती चुपचाप सहन कर अपने पिता के कथनों का विष पी गयी,किन्तु जब उसके पिता द्वारा शिवजी का अपमान किया गया,तो उसे सहन न हो सका।
अपने पति के अपमान ने सती को क्रोध एवं आत्मग्लानि से भर दिया,तथा क्षुब्ध होकर माता सती ने उसी हवं कुंड की धधकती अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को इस घटना के विषय में पता चला, तो उन्होंने गुस्से में अपना आपा खो दिया। भगवान शिव ने अपनी प्रिय पत्नी सती के शव को ले जाकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया।
जब देवताओं ने शिव का यह रौद्र रूप देखा, तो वे जान गए कि यदि भगवान शिव को रोका नहीं गया, तो दुनिया जल्द ही नष्ट हो जाएगी।
इसलिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग किया तथा सती के शव को 51 टुकड़ों में काट दिया। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ के रूप में धार्मिक मान्यता रखते हैं।
Why temple named Kamakhya | मंदिर का नाम कामाख्या क्यों पड़ा
मंदिर को कामाख्या के नाम से क्यों जाना जाता है। इसके पीछे की कथा भी अत्यंत रोचक है। कल्कि पुराण के अनुसार, यह वही स्थान है, जहां माता सती एवं भगवान शिव गुप्त रूप से एक दुसरे के साथ समय बिताते थे।
हिन्दू मान्यता के अनुसार प्रेम के देवता कामदेव ने एक श्राप के कारणवश अपना पुरुषत्व खो दिया। उसके बाद जब उन्होंने इस स्थान पर ईश्वर की उपासना की तो उनको इस श्राप से मुक्ति प्राप्त हुई।
इसी कारण इस स्थान को कामाख्या नाम प्राप्त हुआ। तभी से यह स्थान तंत्र,मन्त्र साधना एवं संतान प्राप्ति के लिए जाना जाने लगा।
ऐसे ही भारत के एक और अद्भुत स्थान शांगरिला ( Shangri-La) के रहस्यों के बारे में पढ़े। कहा जाता है, चीन ने इसी स्थान को पाने के लिए भारत पर हमला किया था।
Religious history of temple | मंदिर का धार्मिक इतिहास
इस मंदिर के धार्मिक प्रमाण या इतिहास कालिका पुराण में मिलता है। कालिका पुराण जिसे काली पुराण, कालिका तंत्र, सती पुराण के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की शक्तिवाद परंपरा में अठारह लघु पुराणों में से एक है।
कालिका पुराण के अनुसार यदि आप कामाख्या में पूजा करते हैं, तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। पहला तांत्रिक मंदिर, कामाख्या 12 ईसा पूर्व में नीलांचल पर्वत पर आक्रमण के दौरान नष्ट हो गया था।
बाद में दूसरा तांत्रिक मंदिर मुस्लिम आक्रमण के दौरान नष्ट हो गया। असम में किसी भी अन्य देवी की तरह देवी कामाख्या की भी संस्कृतियों, आर्य और गैर-आर्य समाज एवं संस्कृतियों के आधार पर पूजा की जाती है।
असम में पूजे जाने वाले देवी-देवताओं के नाम आर्य और गैर-आर्य देवियों को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, योगिनी तंत्र के अनुसार, कामाख्या धर्म का निशान किरातों का धर्म स्थान है।
बनिकान्त काकरी ने उल्लेख किया कि कामाख्या में गारो लोगों ने सूअरों की बलि भी दी थी। यही प्रथा नारनारायण के पुजारियों ने भी जारी रखी।
देवी कामाख्या की पूजा दक्षिणाचार और बामाचार दोनों के अनुसार की जाती है। आमतौर पर पूजा फूलों से की जाती है।
लेकिन कभी-कभी कामाख्या देवी मंदिर में बलि भी दी जाती है। परन्तु मादा पशु बलि प्रतिबंधित है, और कई अन्य जानवरों की बलि को इस अनुष्ठान से बाहर रखा गया है।
भारत के उत्तराखंड में एक झील है, जो आश्चर्य जनक रूप से कंकालों से भरी है। जिसमे समय समय पर कंकाल सतह पर आते रहते है। यह झील रूपकुंड की रहस्य्मयी झील (Roop kund lake) के नाम से प्रसिद्द है।
Bleeding goddess | रक्तस्रावी देवी
कामाख्या मंदिर की देवी को लोकप्रिय रूप से रजस्वला देवी के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है, कि पवित्र मंदिर के ‘गर्भगृह’ में मां शक्ति का पौराणिक गर्भ स्थापित है।
लोगों के अनुसार, देवी की मूर्ति से से ठीक वैसे ही रक्तस्राव होता है, जैसे मासिक धर्म के दौरान सामान्य महिलाओं में होता हैं। यह आज बी सभी के लिए एक अबूझ रहस्य बना हुआ है।
अंबुबाची महोत्सव के दौरान कामाख्या के पास ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। जिसे देवी के मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है।
वैसे नदी के पानी के लाल होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। कुछ लोगों का कहना है, कि पुजारी पानी में सिंदूर और अन्य लाल पदार्थ मिलाते हैं। जिससे पानी का रंग लाल हो जाता है।
देवी कामाख्या हर महिला ‘स्त्री शक्ति’ की मातृत्व शक्ति जश्न मनाती हैं। यह मंदिर मासिक धर्म को महिलाओं की शक्ति को जीवन बनाने की शक्ति के प्रतीक के रूप में दर्शाता है।
Constructor of Kamakhya temple | मंदिर के निर्माता
कोच वंश के संस्थापक विश्वसिंह को 9वीं शताब्दी में एक विशाल मंदिर के खंडहर मिले थे। उन्होंने उस स्थल पर पूजा स्थान को पुनः निर्मित किया।
यह सब उनके पुत्र नारा नारायण के शासनकाल के दौरान हुआ था। फिर इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ तथा वर्ष 1565 में मंदिर बनकर तैयार हुआ।
Ambubachi Festival | अंबुबाची महोत्सव
अंबुबाची मेला गुवाहाटी, असम में कामाख्या मंदिर में देवी कामाख्या के सम्मान में आयोजित होने वाला एक वार्षिक मेला है।
यह चार दिवसीय त्योहार आषाढ़ (मध्य जून) के असमिया महीने के दौरान मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार यह त्यौहार देवी कामाख्या के मासिक धर्म के चक्र को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है।
यदि आप भारत के राजे, रजवाड़ो और रानिवास से जुड़े किस्से कहानिया तथा वह होने वाली पारलौकिक घटनाओ को जानने में रूचि रखते है। तो शनिवार वाड़ा ( Shaniwar Wada) अवश्य पढ़े।
रेगिस्तानी क्षेत्र होने के कारण, रंगबिरंगे उत्सवों से भरा राजस्थान में भूतों के गाँवों की कहानियों की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनमें से कुछ को भानगढ़ (Bhangarh fort) एवं कुलधरा (Kuldhara) जितना महत्व नहीं मिल पाया है।
Belif behind Ambubachi Festival | महोत्सव की मान्यता
इससे जुड़ी पारंपरिक मान्यता यह है, कि हमारी पावन धरती मां भी एक संतान उत्पन्न करने वाली महिला के समान है। देवी माँ कामाख्या अंबुबाची मेला देवी के वार्षिक मासिक धर्म चक्र का उत्सव मनाता है।
देवी शक्ति उन दिनों में मासिक धर्म के चक्र से गुजरती है, तब यह मेला मनाया जाता है। इसलिए मंदिर तीन दिनों के लिए तीर्थयात्रियों के लिए बंद रहता है।
इसके बाद देवी को अपनी पवित्रता प्राप्त करने के लिए घंटों तक विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं। तत्पश्चात देवी दर्शन प्रारम्भ होता है।
आध्यात्मिक अंबुबाची मेला को अमेती या तांत्रिक प्रजनन उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। देवी कामाख्या की पूजा करने के लिए देश भर में तांत्रिक एवं धार्मिक पुजारी भारी संख्या में इकट्ठा होते हैं।
अंबुबाची मेले के दौरान, मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है। इन तीन दिनों के दौरान कुछ प्रतिबंध हैं। जो भक्तों को पालन करने होते हैं, जैसे पूजा नहीं करना, पवित्र पुस्तकें नहीं पढ़ना आदि।
तीन दिनों के बाद मंदिर के दरवाजे फिर से खोल दिए जाते हैं तथा भक्तों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति होती है। भक्त देवी का आशीर्वाद लेने के लिए प्रवेश करते हैं और उनके बीच प्रसाद वितरित किया जाता है।
Blood-stained cloth | रक्त वस्त्र की अवधारणा
दुनिया भर से कई भक्त मंदिर के दर्शन करने आते हैं, देवी का आशीर्वाद लेते हैं। माँ कामाख्या के आशीर्वाद के रूप में विशेष ‘रक्त वस्त्र’ को प्राप्त करते हैं।
Offering | माँ कामाख्या का प्रसाद
चौथे दिन माँ कामाख्या का आशीर्वाद लेने के बाद प्रसाद या पवित्र भोजन वितरित किया जाता है, जो बहुत खास माना जाता है। यह दो अलग-अलग रूपों में वितरित किया जाता है- ‘अंगोदक’ और ‘अंगवस्त्र’।
‘अंगोदक’ शब्द का अर्थ शरीर का तरल भाग है। यह ‘यौवन के रस’ को संदर्भित करता है। ‘अंगवस्त्र’ शब्द का अर्थ है, शरीर को ढकने वाला कपड़ा।
यह लाल कपड़े के एक टुकड़े को संदर्भित करता है, जिसका उपयोग देवी के मासिक धर्म के दौरान योनि के आकार के पत्थर को ढकने के लिए किया जाता है।
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