भारत की अमूल्य सांस्कृतिक विरासत को बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान यहाँ की ऐतिहासिक इमारतों का भी रहा है। भारत की हर एक ऐतिहासिक इमारत अपने भीतर एक कहानी एवं रहस्य छिपाए हुए है।
यह ऐतिहासिक इमारतें अपने निर्माताओं के शानदार एवं वैभवशाली इतिहास का प्रदर्शन करती हुई आज भी बुलंदी से खड़ी हुई है।
इनमे निवास करने वालों के जीवन से जुड़ी बातों का अनुभव आप आज भी इन इमारतों में विचरण करते हुए महसूस कर सकते हैं।
रायसेन का किला (Raisen Fort) अपने भीतर अपने निर्माणकर्ताओं के वैभवशाली इतिहास को समेटे हुए एक अनसुलझी पहेली भी है। अपने निर्माताओं के जीवन से जुडी हुई कहानियों से घिरा एक यह स्थान भी है।
रायसेन का किला भारत का हृदय कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किलोमीटर दूर स्थित है। इस किले का निर्माण विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की चोटी पर किया गया है।
यह अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ आसपास के खूबसूरत नजारों के लिए भी प्रसिद्ध है। समय के साथ-साथ इस किले की दशा अब फीकी पड़ने लगी है।
800 साल पुराने इस किले में शुरुआती मध्ययुगीन काल के नौ प्रवेश द्वार, किलेबंदी, गुंबद और कई इमारतों के अवशेष अभी बचे हैं।
वर्तमान में किले का ज्यादातर हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है। इसके बावजूद यह किला मध्य प्रदेश पर्यटन का अहम हिस्सा बना हुआ है।
इसी वजह से दूर-दूर से पर्यटक इस ऐतिहासिक किले को देखने आते हैं। किले के अंदर एक मुस्लिम संत हजरत पीर फतेहुल्लाह शाह की दरगाह भी है।
मान्यताओं के अनुसार यह दरगाह श्रद्धालुओं की हर मनोकामना को पूरी करती है। इस किले का आकर्षण रायसेन किले को मध्य प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध किलों में से एक बनाते हैं।
16वीं शताब्दी तक यह किला राजपूतों एवं हिंदू शासकों के नियंत्रण में था। लेकिन बाद में भोपाल के नवाबों ने इस किले पर कब्जा कर लिया था और वर्तमान में ये एएसआई (Archaeological Survey of India) द्वारा संरक्षित है।
Raisen Fort History | रायसेन के किले का इतिहास
रायसेन का किला मध्ययुगीन काल 11 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। जहाँ इस किले का निर्माण हुआ उस जगह का नाम राजसायन राजवंश के नाम पर रखा गया।
रायसेन दुर्ग के शासकों का गोंडवाना के सल्लम (सलाम) वंश के साथ मजबूत संबंध थे। उन्होंने भोपाल में तथा गोंडवाना साम्राज्य में दो मजबूत किलों गिन्नौरगढ़ किला एवं फतेहगढ़ किले का निर्माण किया था ।
16वीं शताब्दी के बाद से रायसेन का किला राजपूतों तथा अन्य हिंदू शासकों द्वारा लगाए गए आर्थिक नियमों के प्रभाव में था। रायसेन किला हिंदू काल में अपनी स्थापना के समय से प्रशासन का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा था।
राजपूतों से लेकर मुगलों एवं भोपाल के नवाब शासकों तक किला 16वीं शताब्दी तक शासकों के अधीन था। 15वीं शताब्दी के बाद शेरशाह सूरी ने कई बार इस किले पर कब्जा करने की कोशिश की।
पंद्रहवीं शताब्दी में, इस किले पर मांडू के सुल्तानों का आधिपत्य रहा था, तत्पश्चात यह राजपूतों के अधिकार में चला गया। 1543 में शेरशाह सूरी ने इसको पूरनमल से अपने अधीन कर लिया।
कहा जाता है, कि इस किले को अपने अधिकार में करने के लिए शेरशाह ने तांबे के सिक्कों को गलवाकर तोपों का निर्माण करवाया जिसकी बदौलत उसको यह किला मिला।
लेकिन वह अपने इरादे में कभी कामयाब नहीं हो सके। रायसेन का किला हमेशा अजय ही रहा। इस पर कभी किसी का अधिकार न हो सका।
सम्राट अकबर के शासन के दौरान रायसेन जिला एवं किला मालवा क्षेत्र में उज्जैन के सूबे के रूप में सरकार के मुख्यालयों में से एक मुख्य स्थान था।
भोपाल राज्य के तीसरे नवाब फ़याज़ मोहम्मद खान ने 1760 में रायसेन पर अधिकार एवं शासन किया। बाद में उन्हें सम्राट आलमगीर द्वितीय द्वारा रायसेन के फौजदार के रूप में मान्यता दी गई।
मुगल काल के दौरान, खाखरा उस क्षेत्र का मुख्यालय था जो अब वर्तमान में गैरतगंज तहसील में स्थित है। साथ ही मुगल शासन के दौरान ही इसका वर्तमान नाम प्राप्त हुआ था ।
इस दौरान यह शाहपुर परगना का मुख्यालय भी हुआ करता था। उसके बाद इसे सगोनी ले जाया गया, जो अब बेगमगंज तहसील में पड़ता है।
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Architecture of Raisen Fort | रायसेन किले की वास्तुकला
800 साल पुराना रायसेन दुर्ग एक विशाल पर्वत के बाहरी इलाके में स्थित है। किले में 9 प्रवेश द्वार, 13 बुर्ज, किलेबंदी, गुंबद हैं।
इसमें प्रारंभिक मध्ययुगीन काल की कई इमारतों के अवशेष के साथ एक विशाल पत्थर की दीवार अभी भी उपस्थित है।
रायसेन किले के अंदर आपको हवा महल, बादल महल, रोहिणी महल एवं इरादतन महल देखने को मिलते है।
भले ही इन महलों का सौन्दर्य समय के साथ फीका होने लगा हो, किन्तु यह आज भी अपने वैभवशाली इतिहास का प्रदर्शन करने के लिए उपस्थित है।
यहाँ किले के भीतर आपको एक सुव्यवस्थित जल प्रबंधन प्रणाली के अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं, जो निर्माणकर्ताओं के वास्तुकला ज्ञान का परिचय कराते हैं।
किले के आसपास के क्षेत्र में कई प्राचीन गुफाएं एवं भित्ति चित्र भी देखने को मिलते हैं। जो पर्यटकों को देश के प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के बारे में बताते हैं।
किले के भीतर जहाँ एक और पीर बाबा हज़रात फतेउल्लाह शाह जी की मज़ार है, वहीँ दूसरी ओर एक भव्य शिव मंदिर के अवशेष भी हैं।
रायसेन किले के भीतर यह मंदिर एवं मज़ार किले पर शासन करने वालों की धार्मिक सहिष्णुता का परिचित देती हैं।
The Philosopher’s Stone | पारस पत्थर
रायसेन किले के रहस्य से बहुत से लोग अनजान हैं। जिसके कारण इसके बारे में जानने के लिए बहुत उत्साहित रहते हैं। इस किले ने अपने आप में कई राज छुपाए हुए हैं।
इस किले के बारे में अलग-अलग किंवदंतियां देखने को मिलती हैं। कुछ लोग कहते हैं, कि किले के अंदर आज भी पारस पत्थर मौजूद है।
कहा जाता है, कि इसी पारस पत्थर के लिए किले पर आक्रमण हुआ जिसमे लड़ते हुए राजा की मृत्यु हुई। किन्तु राजा ने मरने से पहले पारस पत्थर को कहीं छिपा दिया।
इसी कथा के अनुसार किले के भीतर जो पानी का सरोवर था उसी में राजा ने पारस पत्थर को फेंक दिया ताकि वो कभी किसी को प्राप्त हो सके।
राजा की मृत्यु के पश्चात् यह किला वीरान होने लगा तथा पारस मणि को खोजने वाले अक्सर यहाँ आने लगे जो सिलसिला आज भी चालू है।
मान्यता है की इस किले एवं पारस पत्थर की देखभाल कोई इंसान नहीं, बल्कि जिन करते हैं। लेकिन कुछ लोग इसे भूतिया घटनाओं का केंद्र मानते हैं। उनके अनुसार इस किले पर एक आत्मा की छाया है।
कहा जाता है, कि यदि कोई भी व्यक्ति रात भर इस किले में रुकता है तो उसका मानसिक संतुलन ख़राब हो जाता है। ऐसा पारस पत्थर के कारण होता है ऐसा किदवंतियों में कहा जाता है।
यदि आपको रहस्य एवं रोमांच से रूबरू होने का शौक है तो आप निश्चित ही रायसेन के किले का भ्रमण कर सकते है।
हो सकता है जिस पारस पत्थर की खोज सालों से लोग करते आ रहे हैं वो आपके द्वारा पूरी की जाये। आप वह खुशनसीब हों जिसको यह अनमोल पत्थर प्राप्त हो।
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भारतीय समाज के इतिहास, विकास, भाषाओ, विविधताओं और उससे विभिन्न कलाओ पर पड़ने वाले प्रभाव को विस्तृत रूप से जानने के लिए भारतीय संस्कृति (Indian culture) पर जाये।
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