प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में 24-24 तीर्थंकर (24 Teerthankar) होते हैं। भरत क्षेत्र में प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्तसर्पिणी के कर्म-काल में 24-24 तीर्थकर होते हैं।
वैसे तो अभी तक अनन्त काल (अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी) बीत चुके हैं और इनमें अनन्त तीर्थंकर हो चुके हैं, फिर भी व्यवहार में भूत, वर्तमान व भविष्य-कालीन 24-24 तीर्थंकर कह गये हैं।
संसार सागर को स्वयं पार करने वाले और दूसरों को पार करने का मार्ग बताने वाले तथा धर्म तीर्थ के प्र्वतक महापुरुष तीर्थकर कहलाते हैं।
ये स्वंय तो मोक्ष प्राप्त करते ही हैं, औरों को भी मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं। तीर्थकर बनने का संस्कार 6 कारण भावनाओं के भाने से उत्पन्न होता हैं।
मनुष्य भव में किसी तीर्थकर या केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में ही ऐसा होता है। ऐसे व्यक्ति प्रायः देवगति में जाते हैं।
यदि पूर्व में नरकायु का बन्ध हुआ है तो वह जीव केवल प्रथम नरक तक में ही जन्म लेता है और बाद के भव में मनुष्य गति से तीर्थंकर बनकर वह मुक्ति को प्राप्त होता हैं।
इस प्रकार देव व नरक गति का जीव ही अगले भव में तीर्थकर बनता है। मनुष्य या तिर्यच गति का जीव अगले भव में तीर्थकर नहीं बनता है। तथ्यों के आधार पर इसे सबसे प्राचीन धर्म भी माना जाता है।
इसके बारे में अधिक जानने के लिये जैन धर्म (About Jainism) पर जाये।
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Previous 24 Teerthankar | भूत-कालीन 24 तीर्थकर
वर्तमान में चल रहे अवसर्पिणी काल से पूर्व उत्सर्पिणी के कर्म-काल में जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में जो 24 तीर्थकर हुए, वे भूत-कालीन 24 तीर्थंकर कहलाते हैं। इनके नाम निम्न प्रकार हैं-
- श्री निर्वाण
- श्री सागर
- श्री महासाधु
- श्री विमल प्रभ,
- श्री शुद्धाभ देव
- श्रीधर
- श्रीदत्त
- श्री सिद्धान्त देव
- श्री अमलप्रभ
- श्री उद्धार देव
- श्री अग्नि देव
- श्री संयम
- श्री शिव
- श्री पुष्पांजलि
- श्री उत्साह
- श्री परमेश्वर
- श्री ज्ञानेश्वर
- श्री विमलेश्वर
- श्री यशोधर
- श्री कृष्णमति
- श्री ज्ञानमति
- श्री शुद्धमती
- श्री भद्र
- श्री अनंत वीर्य
तीर्थंकर किसे कहते है? यह अवतार से कैसे भिन्न होते है? इत्यादि प्रश्नो के उत्तर जानने के लिये Philosophy behind Teerthankar पर जाये।
24 Teerthankar in future | भविष्य कालीन तीर्थकर
अभी अवसर्पिणी काल का पांचवां काल चल रहा है। अतः इस काल में कोई तीर्थंकर अर्थात् अब नहीं होगा। आगामी उत्सर्पिणी
काल के तृतीय काल मे अर्थात् आज से लगभग 8470 वर्ष बाद जब तृतीय काल शुरू होगा तो उसमें आगामी 24 तीर्थकर होंगे।
राजा श्रेणिक का जीव महापञ्म नामक प्रथम तीर्थकर बनेगा। भविष्य में होने वाले 24 तीर्थकरों के नाम निम्न हैं-
- महापद्म
- श्री सुरदेव
- श्री सुपार्श्व
- श्री स्वंयप्रभ
- श्री सर्वात्मभूत
- श्री देवपुत्र
- श्री कुलपुत्र
- श्री उदंक
- श्री प्रौष्ठिल्य
- श्री जय कीर्ति
- श्री मुनिसुव्रत
- श्री अरनाथ
- श्री निष्पाप
- श्री निष्कषाय
- श्री विपुल
- श्री निर्मल
- श्री चित्रगुप्त
- श्री समाधिगुप्त
- श्री स्वयंभूत
- श्री अनिवर्तक
- श्री जय
- श्री विमल
- श्री देवपाल
- श्री अनंतवीर्य
यहाँ वर्तमानकालीन चौबीस तीर्थकरों का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करने हेतु (24 Teerthankar Introduction) पर जाये।
Present 24 Teerthankar | वर्तमान 24 तीर्थकर
वर्तमान में अवसर्पिणी काल का पंचम काल चल रहा है। इससे पूर्व के चतुर्थ काल मे भरत क्षेत्र में जो 24 तीर्थकर हुए हैं, उन्हें ही
वर्तमान 24 तीर्थंकर कहते हैं। इनके नाम व लांछन (चिन्ह) निम्न प्रकार है-
- श्री ऋषभदेव जी (बैल)
- श्री अजितनाथ जी (हाथी)
- श्री संभवनाथ जी (घोड़ा)
- श्री अभिनन्दनाथ जी (बंदर)
- श्री सुमतिनाथ जी (चकवा)
- श्री पद्मप्रभ जी (कमल)
- श्री सुपार्श्वनाथ जी (साथियां)
- श्री चन्द्रप्रभ जी (अर्द्चचन्द्र)
- श्री पुष्पदंत जी (मगर)
- श्री शीतलनाथ जी (कल्पवृक्ष)
- श्री श्रेयांस नाथ जी (गैंडा)
- श्री वासुपूज्य जी (भैंसा)
- श्री विमलनाथ जी (शूकर)
- श्री अनन्तनाथ जी (सेही)
- श्री धर्मनाथ जी (वज्रदण्ड)
- श्री शान्तिनाथ जी (हिरण)
- श्री कुंथुनाथ जी (बकरा)
- श्री अरहनाथ जी (मच्छ)
- श्री मल्लिनाथ जी (कलश)
- श्री मुनिसुव्रतनाथ जी (कछुआ)
- श्री नमिनाथ जी (नील कमल)
- श्री नेमिनाथ जी (शंख)
- श्री पार्श्वनाथ जी (सर्प)
- श्री महावीरस्वामी जी (सिंह)
Existing 20 Teerthankara | विद्यमान बीस तीर्थंकर
जम्बू द्वीप, धातकीखण्ड द्वीप और पुष्करार्द्ध द्वीप में ।, 2 और कुत्र 5 विदेह क्षेत्र है। प्रत्येक विदेह क्षेत्र दो-दो भागों में बँटा हुआ है।
पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह। पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी और पश्चिम विदेह में सीतोदा नदी के बहने से इनके दो-दो भाग हो गये हैं।
प्रत्येक भाग में 4 वक्षार पर्वत और 3 विभंगा नदियों के कारण उनके आठ-आठ भाग हो गये हैं जिन्हे देश भी कहते हैं। इस प्रकार एक विदेह क्षेत्र में 4 हिस्से और 32 देश हैं। प्रत्येक देश में एक आर्यखण्ड़ व 5 म्लेछखण्ड हैं।
इन 32 देशों के प्रत्येक आर्य खण्ड में अधिकतम – तीर्थंकर हो सकते हैं और कम से कम चारों हिस्सों में 1-1 तीर्थंकर होते हैं। इस प्रकार एक विदेह क्षेत्र में एक समय मे अधिक 32 से अधिक तीर्थकर हो सकते है और कम से कम 4 तीर्थंकर होते हैं।
इस प्रकार पांचों विदेह क्षेत्रों में अधिक से अधिक 60 तीर्थंकर हो सकते हैं और कम से कम 20 तीर्थंकर होते हैं। विदेह-क्षेत्र के प्रत्येक हिस्से में आठ-आठ क्षेत्र देश हैं।
प्रत्येक देश में अधिक से अधिक एक-एक तीर्थंकर हो सकते हैं अर्थात् एक हिस्से में एक समय में अधिकतम 8 तीर्थंकर हो सकते हैं।
जम्बूदवीप के विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तर कि ओर जो 8 देश हैं, उनमें किसी एक में सीमंधर स्वामी विराजमान हैं, दक्षिण की ओर के 8 देशों में से किसी एक में युगमंधर स्वामी विराजमान हैं।
इसी प्रकार सितोदा नदी के उत्तर की ओर के आठ देशों में से किसी एक में बाहुस्वामी और दक्षिण की ओर के 8 देशों में से किसी एक में सुबाहुस्वामी विराजमान हैं। इसी प्रकार अन्य 4 विदेह क्षेत्रों में भी प्रत्येक मे 4-4 तीर्थंकर विराजमान हैं।
इन बीस तीर्थंकरों में से जब कोई तीर्थंकर मोक्ष जाता है तो उनके स्थान पर नये तीर्थकर को केवलज्ञान हो जाता है और उसका नाम भी वही रहता है।
इस प्रकार इन की संख्या 20 से कम कभी नहीं होती है और ये बीस तीर्थंकर सदा विद्यमान रहते हैं। इसी वजह से इन्हें विद्यमान 20 तीर्थंकर कहते हैं।
विद्यामान 20 तीर्थंकरों के नाम व चिन्ह
- सीमंधर (बैल)
- युगमंधर (हाथी)
- बाहु (हिरण)
- सुबाहु (बन्दर)
- संजात (सूर्य)
- स्वयंप्रभ (चन्द्रमा)
- ऋषभानन (सिंह)
- अनन्तवीर्य (हाथी)
- सूरिप्रभ (ऋषभ)
- विशाल प्रभ (इन्द्र)
- वजधर (शंख)
- चन्द्रानन (गो)
- चन्द्रबाहु (कमल)
- भुजंगम (चन्द्रमा)
- ईश्वर (सूर्य)
- नेमिप्रभ (सूर्य)
- वीरसेन (हाथी)
- महाभद्र (चन्द्रमा)
- देवयश (स्वस्तिक)
- अजितवीर्य (कमल)
Skin Tone | तीर्थंकरों के वर्ण
वर्तमान चौबीसों तीर्थकरों के वर्ण निम्न प्रकार हैं-
- श्वेत वर्ण वाले – चन्द्रप्रभु 2. पुष्पदन्त
- लाल वर्ण वाले – पद्मप्रभु 2. वासुपूज्य
- श्याम वर्ण वाले – मुनिसुव्रतनाथ 2. नेमिनाथ
- हरित वर्ण वाले – सुपार्श्वनाथ 2. पार्श्वनाथ
- स्वर्ण वर्ण (कंचनवर्ण) वाले – शेष 6 तीर्थंकर होते हैं।
तीर्थकरों के मोक्ष जाने का आसन-
श्री ऋषभदेव, वासुपूज्य और नेमिनाथ तीर्थकर पद्मासन से मोक्ष गये हैं और शेष 2 तीर्थंकर कार्योत्सग आसान (खड़गासन) से मोक्ष गये हैं।
बाल ब्रह्मचारी तीर्थकर-
पाँच तीर्थकर (वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ ओर महावीर स्वामी) बाल ब्रहमचारी थे और शेष का विवाह हुआ था।
तीन पदवी के धारी तीर्थकर- श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ तीन- तीन पदवियों (तीर्थकर, चक्रवती और कामदेव) के धारी थे।
एकाधिक नाम वाले तीर्थकर- वर्तमान 24 तीर्थकरों में से तीन के नाम एक से अधिक हैं, जो निम्नप्रकार हैः-
- भगवान ऋषभदेव को आदिनाथ व वृषभनाथ भी कहते हैं। ये आदि (शुरू) में हुए हैं, इस कारण इन्हें आदिनाथ कहते हैं और इनके वृषभ (बैल) का लांछन है, अतः इन्हें वृषभनाथ भी कहते हैं।
- भगवान पुष्पदन्त का दूसरा नाम सुविधिनाथ है।
- महावीर भगवान के पाँच नाम प्रसिद्ध हैं- वर्दडमान, वीर, सन्मति, महावीर और अतिवीर।
- नेमिनाथ को अरिष्टनेमि भी कहते हैं। (श्वेताम्बर परम्परा में)
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महावीर स्वामी की शिक्षाओं और समाज तथा विभिन्न क्षेत्रो में शिक्षाओं से होने वाले प्रभाव को जानने के लिए Teerthankar Mahaveer Swami अवश्य पढ़े।
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